जानिए कौन है ब्रह्मा की मानसपुत्री छठ मैया , भगवान् श्रीकृष्ण के पुत्र ने किया था सबसे पहले छठ पूजा |
ब्रह्मवैवर्तपुराण के प्रकृतिखंड में बताया गया है कि सृष्टि की अधिष्ठात्री प्रकृति देवी के एक प्रमुख अंश को देवसेना कहा गया है। प्रकृति का छठा अंश होने के कारण इन देवी का एक प्रचलित नाम षष्ठी है।
षष्ठी देवी को ब्रह्मा की मानसपुत्री भी कहा गया है. पुराणों में इन देवी का एक नाम कात्यायनी भी है। इनकी पूजा नवरात्र में षष्ठी तिथि को होती है।
षष्ठी देवी को ही स्थानीय बोली में छठ मैया कहा गया है, जो नि:संतानों को संतान देती हैं और सभी बालकों की रक्षा करती हैं।
सूर्य की गिनती उन 5 प्रमुख देवी-देवताओं में की जाती है, जिनकी पूजा सबसे पहले करने का विधान है. पंचदेव में सूर्य के अलाव अन्य 4 हैं: गणेश, दुर्गा, शिव, विष्णु
शास्त्रों में भगवान सूर्य को गुरु भी कहा गया है। पवनपुत्र हनुमान ने सूर्य से ही शिक्षा पाई थी। श्रीराम ने आदित्यहृदयस्तोत्र का पाठ कर सूर्य देवता को प्रसन्न करने के बाद ही रावण को अंतिम बाण मारा था और उस पर विजय पाई थी।
श्रीकृष्ण के पुत्र साम्ब को कुष्ठ रोग हो गया था, तब उन्होंने सूर्य की उपासना करके ही रोग से मुक्ति पाई थी। सूर्य की पूजा वैदिक काल से काफी पहले से होती आई है।
सूर्य की उपासना करने से मनुष्य को सभी तरह के रोगों से छुटकारा मिल जाता है. जो सूर्य की उपासना करते हैं, वे दरिद्र, दुखी, शोकग्रस्त और अंधे नहीं होते।
सूर्य सभी प्राणियों पर समान रूप से कृपा करते हैं. वे किसी तरह का भेदभाव नहीं करते. इस पूजा में वर्ण या जाति के आधार पर भेद नहीं है. इस पूजा के प्रति समाज के हर वर्ग-जाति में गहरी श्रद्धा देखी जाती है। हर कोई मिल-जुलकर, साथ-साथ इसमें शामिल होता है।
सूर्यषष्ठी व्रत में लोग उगते हुए सूर्य की भी पूजा करते हैं, डूबते हुए सूर्य की भी उतनी ही श्रद्धा से पूजा करते हैं। इसमें कई तरह के संकेत छिपे हैं। ये पूरी दुनिया में भारत की आध्यात्मिक श्रेष्ठता को दिखाता है।
घर-परिवार में अपनी संतानों के प्रति जितना प्रेम और मोह रखते हैं, उतना ही प्रेम और आदर बड़े-बुर्जुगों के प्रति भी रखना चाहिए।
समाज में केवल संपन्न लोगों को ही आदर देते की जगह, उन्हें भी आदर-सम्मान देना चाहिए, जो किसी वजह से आज विपन्न और जरूरतमंद हैं।
कई लोग मन्नत पूरी होने पर लेटते हुए भी घाट पर जाते है उसे कस्टी सहना कहते है.!
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